इस वार्ता की वजह ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम है. ईरान काफ़ी वर्षों से अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम विकसित कर रहा है.
अपने परमाणु कार्यक्रम के कारण ईरान वैश्विक स्तर पर कई तरह के प्रतिबंध का सामना कर रहा है.
साल 2015 में ईरान और छह वैश्विक शक्तियों, जिसमें अमेरिका भी शामिल था, के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे ज्वॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) कहा गया.
2015 के समझौते के अनुसार, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण के लिए राज़ी हुआ था. इसके बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को ख़त्म करने पर सहमति बनी थी.
लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2018 में ईरान के साथ हुए इस परमाणु समझौते से अमेरिका को हटा लिया था और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया.
उनका कहना था कि 2015 का समझौता ईरान के पक्ष में ज़्यादा है और वो अधिक मज़बूत समझौता करना चाहते हैं. हालांकि, इसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत में कोई ख़ास प्रगति नहीं देखी गई है.
अब अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान के साथ नया समझौता करने की बात कही है